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कविता के शीर्षक: ”पुलिस वाला गुण्डा” – अनिल सर्राफ

पढले रहिँ  सच्चा देश प्रेमी होला पुलिसवाला ।
बाकिर ई का देखके मिलता हाय रे उपरवाला ।।

शान वाला वरदी मे रक्षक भइले देश के भक्षक ।
न्याय सम्मान के गोलि मरले खालि काम करेले झटपट ।।

पइसा वाला से पुलिस बेचाता, न्याय जाओ भले भाड मे ।
नेतासब से पाटी चलेला दारुमासु के आड मे ।।

दोषी के निर्दोषी बनावे मे बा इ लोग लगे कलाकारी ।
अभिओ ले जनता इन्तजारे मे बा कब करि लोग चमत्कारी ।।

सच्चा पुलिस वाला एगो आइल रहले रमेश खरेल नाम के ।
गारदा गारदा उडवले रहले भ्रष्टचारी सन के काम के ।।

बिन देखलें धनिक गरीब, न्याय बराबर काम कइलें ।
का धनिक आ का गरीब, सब के दिल मे छाप छोड के गइलें ।।

अभि के कुछ पुलिस वाला भ्रष्टचारी के बनउले धन्धा ।
त ओहिमे कुछ पुलिस भइले आंख अछइत अन्धा ।।

ना जाने कब जागी लोग,
साँच से केतना भागि लोग ।

मनपरुए काम करेला लोग लेइके हुण्डा ।
ओहिसे कहाता लोग पुलिस वाला गुण्डा ।।

– अनिल सर्राफ, कलेया, बारा

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