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पानी बिन सुखाड़ – अजमत अलि अन्सारी (भोजपुरी कविता)

कही एतना बरसत की, उमडल बा बाढ़

इहा लोग तरसत बा, पानी बिन सुखाड़

नहर-पोखरा, नदीया-नाला, ताल-तलईया

सुखी गइले डबरा-डबरी गढ़हा-गढ़हिया

धारा-चापाकल बिसुकी करे सोंय-साँय-2

खाली घईला-डोल, खाली गिल-बोतल जार

सभे लोग तरसत बा पानी बिन सुखाड़

गाछ-बिरिछ, झार-पात, फर-फरहरी

धन्की गइल रोपा सारी, बियावा गइल जरी

दिनवा मे धरती लागेला धीकल तावा-2

फाटी-फाटी भइल बाटे खेत मे दरार

सभे लोग तरसत बा पानी बिन सुखाड़

पशु-पंछी, माल-जाल, हकर-हकर करे

पानी के मछरिया, पकर-पकर करे

नरम-नरम चाम, झोकर गइल सबकर-2

आउल-फिउल मचलबाटे, सगरो हाहाकार

सभे लोग तरसत, बा पानी बिन सुखाड़

जलदी से देईद, मेघ हो अल्लाह मालिक

अइसन बिपतिया से, मांगीले पनाह मालिक

जानी-जानी जे प्रकृति के छेड़नी, उ-2

माफ़ करदीं सारी, गलतीया हमार

सभे लोग तरसत बा, पानी बिन सुखाड़

– अज़मत अली अंसारी, 

बीरगंज, पर्सा, नेपाल

Mon. July-24-2024

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