एगो गाँव मे बहुते वडका जमिनदार जी रलन । दु गो बच्चाके जलम दिहला के बाद उनकर मेहरारु के मुअला बहुते दिन होगइल रहे । उ बहुते धनीमनी रहले बाकिर उनकर एगो खराब आदत रहे कि उनका दुअरा पर कवनो भि गरिब चलजाए त ओकरा के भिखारी कहत रलन । आ मजाक बनावत रलन ।
उनका २ गो बीना महातारी के छोट वेटा वेटी रहे । महातारी के कमि महसुस ना होखे कहके उ अपना वेटा वेटीके बहुते वडका आदमी बनावेके चाहत रलन । एहिसे उनकर सोच रहे कि उनका वेटा–वेटीके कवनो विद्वान आ जानल मानल गुरु पढइयन त ओकनी भी विद्वान बनी आ जिनगी मे कवनो तकलिफ ना होइ ।
एकदिन उ एगो वहुते विद्वान मास्टर के खोजके पैसा के चढावन आ बहुते निहोरा कइलन घरेमे आके उनकर बेटा–बेटीके पढावे खातिर । शुरुमे ना मानल मास्टर एतना बड जमिनदार गिडगिडाके निहोरा कइल देख के माया लागल आ मान गइल ।
विहान भइला मास्टर जी उ जमिनदार के घरपर गइलन त गरिब मास्टर जी के उनकर वेटा–वेटी ना चिनलख आ मास्टर जी के देखके कहलस, ‘बावुजी–बावुजी, बाहर एगो भिखारी आइल बा ।’ जमीनदार झाल से बाहर देखलन त मास्टर जी रहनी । बाहर आके खिसे अपना वेटाके एक झापर मरलन । मास्टर जी पुछनी काहे मारतानी ? त जमिनदार कहलस कि एकनी विगर गइलवाड सन । मास्टर जी से कइसन खराब लवज वोल देल सन । मास्टर जी कहनी, ‘एकनी सब ना स्कूल जाला । ना बाहरे खेलेजा । फेर अइसन शब्द काहा से सिखले होइए सन ? घर से ही सिखले होइस । एहिसे घर के वातावरन जइसन बनाएम ओइसने बुधि भि होखि ।’
मास्टर जी के बात से जमिनदार के बहुते लज्जा बोध भइल । मास्टर जी से हाथ जोड के माफि मगलन । आपन गलतिके महसुस कइलन आ आपन खराब बोलि बोलेवाला आदत के सुधार कइलन । सबसे इजत से बोलेके शुरु कइलन ।
इ कथा से मिलल सिखः
आदमी खालि पैसा से बड ना होखेला ।
बचासब जइसन वातावरनमे रहेला, ओइसन गुन सिकेला ।
लेखक के बारेमे:
गोविन्द दुबे बारा जीला, नेपाल के रहनियार हइ । भोजपुरी, नेपाली, हिन्दी आ अंग्रेजी भाषा मे भि उ कलम चलावेलन ।