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दुःख ओरवा दीं उदह के (भोजपुरी कविता)

सोचेनी की दुःख ओरवा दीं उदह के

का करिं ? बान्ह टुट जाला रह-रह के

देखि-सुनी भीतरी लाहास जस मारे

जियल कठिन ईंहाँ झूठ-सांच सह के

समयके हकदार सिर्फ माई-बाप हउवें

खा लेला लोग उहो यार-भाई कह के

तनी-तनी जमा करिं प्रीत के जेवर

लूट लेला लोग दिलके बाक्सा उनह के

– अज़मत अली अंसारी, बीरगंज, पर्सा

Wed, March 6, 2024

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