भाई–बहिन के अटूट प्रेम आ आस्था के परव रक्षाबंधन शुक के दिन मनावल जाई । बहिन लोग दुलार के तार बान के भाई लोग के कलाई पर सजाई ।
पंडित लोग के मुताबिक दिन मे भदरा के चलते आजु राखी बान्हल नईखे जा सकत । आजु के दिन रात के ८:२६ बजे भदरा खतम होई । भदरा के अंत से अगिला दिन यानी बिहान सबेरे बहिन लोग अपना भाई के कलाई पर ७:२६ बजे से राखी बान सकेले । विद्वान लोग के इहो मानना बा कि बिहान के दिन शुभ दिन बा ।
पंडित के मुताबिक राखी बाहानत घरी भाई के पुरब भा उत्तर मुंह करके बईठे के चाहिं । सबसे पहिले बहिन के अपना अनामिका के अंगुरी से भाई के माथा प अक्षत यानी चाउर लगावे के चाही । काहेकि अक्षत अटूट शुभ के प्रतिनिधित्व करेला । एकरा बाद भाई के कलाई प राखी बान्हत घरी उनुका के शुभकामना देवे के चाहि । भाई भी अपना बहिन के रक्षा खातिर प्रण लेबे के चाहिं आ ओकरा के उपहार देबे के चाहीं ।