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अबो जे कबो छूटे लोर आंखिन से
बबुआ के ढॉंढ़स बंधावेले माई ।
आवे ना ऑंखिन में जब नींद हमरा
त सपनो में लोरी सुनावेले माई ।।
बाबूजी दउड़ेनी जब मारे-पीटे
त अंचरा में अपना लुकावेले माई ।
छोड़ीना, बबुआ के मन ठीक नइखे
झूठहूं बहाना बनावेले माई ।।
ऑंखिन का सोझा से जब दूर होनी
त हमरे फिकिर में गोता जाले माई ।
आंखिन का आगा लवट के आई जब
त हमरा के देखते धधा जाले माई ।।
अंगना से दुअरा आ दुअरा से अंगना ले,
बबुआ का पाछे ही धावेले माई ।
किलकारी मारत, चुटकी बजावत,
करि के इसारा बोलावेले माई ।।
हलरावे, दुलरावे, पुचकारे प्यार से
बंहियन में झुला झुलावेले माई ।
अंगुरी धराई, चले के सिखावत
जिनिगी के ´क-ख´ पढ़ावेले माई ।।
गोदी से ठुमकि-ठुमकि जब भागी त
पकड़ के तेल लगावेले माई ।
मउनी बनी आउर भुंइया लोटाई
त प्यार के थप्पड़ देखावेले माई ।।
पास-पड़ोस से आवे जो ओरहन
काने कनइठी लगावेले माई ।
बकी तुरन्त लगाई के छातीसे
बबुआके अमरित पियावेले माई ।।
तनको सा लोरवा ढरकि जाला अंखिया से
देके मिठाई पोल्हावे ले माई ।
चन्दा मामा के बोला के, कटोरी में
दूध- भात गुट-गुट खियावेले माई ।।
बबुआ का जाड़ा में ठण्डी ना लागे
तापेले बोरसी, तपावेले माई ।
गरमी में बबुआके छूटे पसेना त
अंचरा के बेनिया डोलावेले माई ।।
मड़ई में “भुंइया “भींजत देख बबुआ के
अपने “भींजे, नाभिंजावेले माई ।
कवनो डइनिया के टोना ना लागे
धागा करियवा पेन्हावेले माई ।।
पठावेमे में जब कबो देर होला चिट्ठी त
पंडित से पतरा देखावेले माई ।
रोवेले रात “भर, सूते ना चैन से
भोरे भोरे कउवा उचरावेले माई ।।
जिनिगी के अपना ऊ जिनिगी ना बूझेले
‘बबुए नू जिनिगी ह’ बोलेले माई ।
दुख खाली हमरे ऊ सह नाहीं पावेले
दुनिया के सब दुख ढो लेले माई ।।
‘जिनिगी के दीया’ आ ‘ऑंखिन के पुतरी’
‘बुढ़ापा के लाठी’ बतावेले माई ।
‘हमरो उमिरिया मिल जाए हमरा बबुआ के’
देवता-पितरके गोहरावेले माई ।।
कवि: मनोज भावुक
श्रोत: भोजपुरी खबर
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