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“माई” भोजपुरी कविता

अबो जे कबो छूटे लोर आंखिन से

बबुआ के ढॉंढ़स बंधावेले माई ।

आवे ना ऑंखिन में जब नींद हमरा

त सपनो में लोरी सुनावेले माई ।।

बाबूजी दउड़ेनी जब मारे-पीटे

त अंचरा में अपना लुकावेले माई ।

छोड़ीना, बबुआ के मन ठीक नइखे

झूठहूं बहाना बनावेले माई ।।

ऑंखिन का सोझा से जब दूर होनी

त हमरे फिकिर में गोता जाले माई ।

आंखिन का आगा लवट के आई जब

त हमरा के देखते धधा जाले माई ।।

अंगना से दुअरा आ दुअरा से अंगना ले,

बबुआ का पाछे ही धावेले माई ।

किलकारी मारत, चुटकी बजावत,

करि के इसारा बोलावेले माई ।।

हलरावे, दुलरावे, पुचकारे प्यार से

बंहियन में झुला झुलावेले माई ।

अंगुरी धराई, चले के सिखावत

जिनिगी के ´क-ख´ पढ़ावेले माई ।।

गोदी से ठुमकि-ठुमकि जब भागी त

पकड़ के तेल लगावेले माई ।

मउनी बनी आउर भुंइया लोटाई

त प्यार के थप्पड़ देखावेले माई ।।

पास-पड़ोस से आवे जो ओरहन

काने कनइठी लगावेले माई ।

बकी तुरन्त लगाई के छातीसे

बबुआके अमरित पियावेले माई ।।

तनको सा लोरवा ढरकि जाला अंखिया से

देके मिठाई पोल्हावे ले माई ।

चन्दा मामा के बोला के, कटोरी में

दूध- भात गुट-गुट खियावेले माई ।।

बबुआ का जाड़ा में ठण्डी ना लागे

तापेले बोरसी, तपावेले माई ।

गरमी में बबुआके छूटे पसेना त

अंचरा के बेनिया डोलावेले माई ।।

मड़ई में “भुंइया “भींजत देख बबुआ के

अपने “भींजे, नाभिंजावेले माई ।

कवनो डइनिया के टोना ना लागे

धागा करियवा पेन्हावेले माई ।।

पठावेमे में जब कबो देर होला चिट्ठी त

पंडित से पतरा देखावेले माई ।

रोवेले रात “भर, सूते ना चैन से

भोरे भोरे कउवा उचरावेले माई ।।

जिनिगी के अपना ऊ जिनिगी ना बूझेले

‘बबुए नू जिनिगी ह’ बोलेले माई ।

दुख खाली हमरे ऊ सह नाहीं पावेले

दुनिया के सब दुख ढो लेले माई ।।

‘जिनिगी के दीया’ आ ‘ऑंखिन के पुतरी’

‘बुढ़ापा के लाठी’ बतावेले माई ।

‘हमरो उमिरिया मिल जाए हमरा बबुआ के’

देवता-पितरके गोहरावेले माई ।।

कवि: मनोज भावुक

श्रोत: भोजपुरी खबर

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