बेटी एक पिजडेकी पंक्षी

एक पिजडेकी पंक्षीकी तरहा बन्द है वो
एक बेरुखी जालमे, बहुत बुरे हालमे
ना कोइ रास्ता मिला ना कोइ वास्ता मिला
तडप तडप के आंसु बहाए वो बेहालमे।

एक आश देकर, विश्वास देकर ले गये वो साथमे
कहके अधुरी ना रहेगी तेरी ख्वाइस किसी हालमे
पड गइ वो पंक्षी उस झुटे आश्वासन के हाथमे
सपना उसका सपना ही रह गया इस चालमे।

सुनेहरी सपना सालो से सजाइ थी वो साथमे
कि वो भी सामिल होगी बिदाईकी त्यौहारमे
पर इस पलको पानेकी लकीर नही उसके हाथमे
आह! उसके जीतकी सपने बदल गइ हारमे।

मातापिता भी नही सम्झे ना सम्झा उसका भाइ
उसकी भावनावोकी, उसकी चाहतकी बात
कुचलके रख दिए सब सपनोको बनके कसाइ
लग रहा होगा उसे चारोओर दिनमे भी रात।

वो तकिए तले रो रही होगी सपनोको खोते हुए
हर सपना झलक बनके आता होगा जाता होगा
दिलको दर्दकी गोलीसे छल्ली छ्ल्ली करते हुए
फिर भी डर से उनका चेहेरा मुस्कुराता होगा।

पढ्ती थी वो दस कक्षा मे थी पढाइमे वो अबल
और अन्तिम परीक्षाका वक्त आ चुका था करीब
इसी वक्त उसका सादीका बात हो गया सफल
सोचके कल क्या पता अमीर मिलेगा या गरीब।

वो भी वो मान गइ मा बापके अरमानोके लिए
पर एक इच्छा थी स्कुलके अन्तिम दिन जाना
दोस्तोसे मिलना, तस्बिर खिचाना यादोके लिए
पर इस सपनेको कोइ अपने भी नही पहचाना।

ऐसे तो हमारे लडकिया पिजडा मे जिती ही है
सादीके पहेले भी और सादी के बाद भी
और जिन्दगीभर शोषणकी जहर पिती ही है
चाहे होके वो कैदी भी चाहे होके आजाद भी।

-विवेकानन्द कुमार साह
बहुअर्वा भाठा, हरिनगर
बिन्दावासिनी गा. पा. – २

This Post Has One Comment

  1. Roshan

    यो कविता धेरै राम्रो लाग्यो । …..

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