बेटी एक पिजडेकी पंक्षी
एक पिजडेकी पंक्षीकी तरहा बन्द है वो
एक आश देकर, विश्वास देकर ले गये वो साथमे
सुनेहरी सपना सालो से सजाइ थी वो साथमे
मातापिता भी नही सम्झे ना सम्झा उसका भाइ
वो तकिए तले रो रही होगी सपनोको खोते हुए
पढ्ती थी वो दस कक्षा मे थी पढाइमे वो अबल
वो भी वो मान गइ मा बापके अरमानोके लिए
ऐसे तो हमारे लडकिया पिजडा मे जिती ही है
-विवेकानन्द कुमार साह
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यो कविता धेरै राम्रो लाग्यो । …..